Saturday, November 26, 2011

अक्सर मन ढूंढे वो तारा.......


बचपन में सुनी एक बात याद आती है
जीवात्माएं मर कर तारा बन जाती हैं
छूट गया आंचल जो प्यारा ......
अक्सर मन ढूंढे वो तारा........

चूम कर ललाट, मुझे हर सुबह जगाती थी
राजकुंवर के जैसा फिर मुझे सजाती थी
जो भी हूँ ... उसी ने संवारा ......
अक्सर मन ढूंढे वो तारा........

" आ चिड़िया !आ गैया!" कह कर बहलाती थी
एक 'कौर' खाने को, सौ तरह मनाती थी
वक़्त नही लौटता दुबारा ........
अक्सर मन ढूंढे वो तारा........

बिन बोले मन की वो बात सभी जाने
रात रात भर दुःख में बैठे सिरहाने
करती अपलक मुझे निहारा .......
अक्सर मन ढूंढे वो तारा........

बचपन में जो बातें लगतीं बेमानी
उन्हें याद कर आँखों से बरसे पानी
व्यर्थ लगे अब वैभव सारा ........
अक्सर मन ढूंढे वो तारा........

1 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर
भावपूर्ण गीत